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           ARTICLE WRITING COMETITON - 2020 
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                                     करम पर्व

     भाषा विज्ञान की ढृष्टि से " पर्व " पृ धातु से वनिप प्रत्यथ लगाकर पर्व शब्द निष्पन्न होता है , लोक में इसे " उत्सव " या " त्योहार "के लिए प्रयुत्त किया जाता है ।
      
        हिंदुस्तान  में विभीन्न जाति या समाज है , और उनकी ऐतिहासिक गथाओ से होता है । हर जनजाति या समाज के अपने - अपने परमपरागत रीति - खिज एंव विधि - विधान है और उनके अनुसार ही वे सभी पर्व - उत्सव को मनाते है ।

        हिंदुस्तान मे कई समाजो मे से एक " आदिवासी समाज " भी है । इस समाज के अपने तोर - तरीके एंव पर्व है । आदिवासी समाज में भी कई पर्व है इनमे से एक एक पर्व का नाम " करम पार्व " है । 
       
         ' करम पर्व ' एसे समय मे मनाया जाता है जिस पृथ्वी फसलों से हरियाली व सभी खेतों मे फसल लहलहा रही होता । करम त्योहर करम देवता , बिजली , युवाओं और शबाब के देवता की पूजा है । " करम पर्व " झारखण्ड , बिहार , ओडिशा , पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख त्योहार है । मुख्य रूप से यह पर्व भादों ( लगभग सितम्बर ) मास की एकादशी के दिन  को मनाया जाता है । इसे राजी "करम पर्व" के नाम से भी जाना जाता है। परंतु झारखंड के गुमला और लातेहार , छत्तीसगद के जसपूर और सरगुजा जिलों में अलग - अलग नामों व समय मे मनाया तो जाता है परंतु इनकी ने - ग पूजा का विधि विधान एक जैसा  ही होता है । 
       
       आदिवासी समाज के उरांव जनजाति समाज में  'करम पर्व ' महत्वपूर्ण पर्वो में  से एक है । यह अविरल गंगोत्री की धारा के समान प्रवाहित , युगों से गतिमान रीति - रिवाजो संस्कृति भरी गागरी है । जिसकी एक - एक बूँद जीवन की प्यास बुझती है । उरांव जनजाति संस्कृति का मूल और विस्तार उनकी प्रथाओ व कथाओं मे देख सकते है । उरांव जनजातियों में विश्वास आश्था और लोक कथा में देवी - देवताओ का कोई वर्ण नही देखा जा सकता है । ये प्रकृति पूजारी है और प्रकृति के इस गुढ़ रहस्यो को समझने के लिए मानव ने अपनी कल्पना तर्क शत्ति से जो प्रतिबिम्ब का संकेत चुने वही ' प्रकृति ' है । इस लिए ही उरांव समाज ' करम पर्व ' को प्रकृति से जुड़े होने के कारण यह " पर्व " मानते है । 

         " करम पर्व " का आदिवासियो मे किस प्रकार मनाया जाता । करम की मानोती मानने वाले दिन भर उपवास रख कर अपने सगे - सम्बन्धियो व अड़ोस - पड़ोसियो को निमंत्रण देता है , तथा शाम को करम वृक्ष की पूजा कर टँगिये कुल्हारि के एक ही वर में वृक्ष के डाल को  काटा दिया जाता है और उसे जमीन पर गिरने नहीं दिया जाता । तदोपरांत उस डाल को आखड़ा मे गाड़कर उसकी पुजा पूरे रीति - रिवाज के साथ होती है । करम पर्व के अवसर पर नाच - गान का उत्साह भी देखने को मिलता है । करम पर्व पहुँचने से दस दिन पहले कुवांरी लड़कियां गोला व धुमकुडिया घरों में जवा जमाती है। जवा मे विभिन्न प्रकार के बीजो मे मकई, जौ, धान, गेहुँ, गोदली, उरद, कुरथी, 
  नों दिनों तक हल्दी पानी का छिड़काव किया जाता है । जवा जमने वाली लड़कियां जवा तेयार होने तक नमक व हल्दी नहीं खाती है । करम पर्व के एक दिन पूर्व " ड्ंडु कट्रना " एक पवित्र ने - ग यानि पूजा की विधि संपन की जाती है । कर्मा पूजा , कर्मा देव से प्रार्थना होता है जिसमे पृथ्वी पर रहने तक प्रकृति संग जीवन यापन करते मे हमारी सहायता करे । करम पर्व वाले दिन अखड़ा पहूँचकर नाचते हुए तीन भवरी लगाते है फिर बीच मे करम डाली के साथ खड़े हो जाते है सबसे पहले नयगनी ( पहान की पली ) उन सभी का पैर धोती है , फिर अखड़ा के बीच मे गोबर से लीपेती है इसी लिपा हुआ स्थान में पहान ने - ग के अनुसार गढ़ा खोदकर करम डाली को गाड़ते हें करम गाड़ने के बाद फल फूल आदि को " करम देव " के लिए चड़हाया जाता है । करमईत बच्चियां अपने - अपने लोटा से तीन बार करम डाली मे पानी डालती है । करम ड़ाउडा को करम केआर चारों और रखा जाता है , और वही सभी बैठ जाते है । " करामदेव " की पूजा - अर्चना संपन किया जाता है पूजा संपन होने के पझ्रात नयगस या कोई भी जानकार व्यात्तियों के दुआरा " करम लोक " कथा सुनाई जाती है ।

 " एक कथा के अनुसार " जों "करम पर्व " कथा से अलग है ।
         कर्मा पूजा नर्त्पा के साथ कई लोग इस पूजा की अधिष्ठात्री देवी " करमसेनी देवी " को मानते है , तो कई लोग विझ्र्कर्म भगवान को इसका आराध्य देवता मानते है । ज्यादातर लोग इसकी कथा को राजा कर्मा से जोड़ते है , जिसने विपित्त - परेशानिया से छुठकारा पाने के उपरांत इस करमा पूजा उत्सव नर्त्य का आयोजन पहलीवार किया था । आदिवासी लोग कर्मवीर है जो कृषी कार्थ को संपनन करने के बाद उपयुत्त अवसर पर यह उत्सव मानते है ।

           इस प्रकार करम पूजा को लेकर और भी कोई कहानियां हे जो और ये सभी प्रकृति के प्रति सम्प्र्थ हे जेंसे इस कथा का सर प्रवुषण न फेलाये मन जा सकता है । 
   
           " करम पर्व " सभी लोगो के मन मे अलग प्रकार का ही प्रकाश दाल देता है । ' करम पर्व ' आदिवासी को जोड़ रखते है । निश्च्थ रूप से हम यह देख सकते है " पर्व " ही एक कड़ी है जिसे हम एक दुसरे से जोड़ ने मदत करना है । सभी के जीवन मे कुछ न कुछ चीज से जुड़े होते है ' करम पर्व ' भी आदिवासियो को एक सात जोड़े रखते है । जहा सभी भेद - भाव भूल के एक साथ आते है और अपना प्रकृति से मिल वरदानो के लिए धन्यवाद की प्रार्थना करमदेवता तक पाहुचाते है ।

By - Pearly Sarma 
Meghalaya, Shillong